यदि आपका आहार विहार सही नही है तो ब्रहा भी आपको बीमारियों से नहीं बचा सकते-डॉ अनिल जैन

यदि आपका आहार विहार सही नही है तो ब्रहा भी आपको बीमारियों से नहीं बचा सकते-डॉ अनिल जैन


आदमी जो चाहे कर सकता है, इसलिए तो वेदो में कहा है अंह ब्रहास्मि। हिंदी में कहावत है जहां चाह वहां राह, अंग्रेजी में एक कहावत और भी है you are the creator of your own destiny
उर्दू में कहा है हिम्मते मर्दा मददे खुदा। आप चाहे बीमार है या स्वस्थ.. परंतु रहते तो है आप कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्र महानगर में ही। फिर जब शरीर के सभी अंगो तक शुद्द आक्सीजन नहीं पहुंचेगी तो भोजन का निकला हुआ रस जो विभिन्न अंगों में ऑक्सीजन का इंतजार कर रहा है। वह सड जाएगा। यदि वह सड़ जाएगा तो निश्चित रुप से आपको रोग होंगे। गलत भोजन तो रोगी बनाने में सहयोगी है ही ऑक्सीजन का भी कम सहयोग मत समझना। इसलिए इसका कोई हल अवश्य ढूंढे।
सभी पत्ते सर्य की किरणों में ऑक्सीजन पैदा करते है। बस इस ऑक्सीजन को इकठ्ठा करके हमें अपने शरीर में पहुंचाना है। यह कार्य कोई बहुत मुश्किल नही है। 8 साल का बच्चा भी अपने लिए ही नहीं आपके लिए भी ऑक्सीजन इकठ्ठी कर सकता है।
विधि- एक शीशे का गिलास लें तथा एक शीशे का टुकड़ा ले। जो गिलास को पूरी तरह ढक ले और जिसके पार सूर्य कि किरणें जा सकें। अब आठ-दस तुलसी, धनिया, पोदिना, बथुआ, मेथी, पालक, (छोटे पत्ते), चौलाई आदि कोई भी पत्तेदार सब्जी के पत्ते लें। उन्हें अच्छी प्रकार से धो लें तथा गिलास में डाल दें। फिर गिलास को पानी से भर दें तथा काँच के टुकड़े से गिलास को ढक दें।अब गिलास को सूर्य की किरणों में रख दें। बस सूर्य की किरणों में ये पत्ते फिर ऑक्सीजन पैदा करना शुरू कर देंगे। वह ऑक्सीजनपानी में मिलती जाएगी। 30 मिनट के बाद इस पानी को पी लें। यदी खाना चाहें तो पत्ते भी खा लें। यदी सूर्य की किरणें नहीं हैं तो सूर्य की रोशनी प्रयोग कर लें। इस प्रकार शुद्धतम ऑक्सीजन आप ग्रहण कर सकते हैं। याद रखें तुलसी का पत्ता सबसे ज्यादा मूल्य रखता है। यह भी परीक्षणों के दौरान पाया गया है। कि तुलसी के पत्तों में पारा नहीं होता, अत: इस भ्रान्ति को भी मन से दूर कर लें और तुलसी के पत्ते भी बेहिचक खा लें। यदी तुलसी के जल का प्रयोग करते रहें तो रोग आसानी से नहीं आएगा। यदि रोगी को दिन में तीन-चार बार प्रयोग करा दें तो आशातीत सफलता मिलेगी। यह प्रयोग घर में ही नहीं, दफ्तर, फैक्ट्री, दुकान कहीं भी किया जा सकता है। मेरी समझ में नहीं आता जब सभी डॉक्टर, वेद्दों से लेकर साधू-सन्त तक यही समझाते हैं कि भोजन कम खायें तो वही लोग पानी क्यों ज्यादा पीने के लिए बार-बार बाध्य करते हैं। मुझे स्वयं कई-कई महीने पानी पीये हो जाते हैं, परन्तु मेरे शरीर में पिछले ढाई साल में कहीं कोई भी कमी नही आई, क्योंकि मैंने नमक का प्रयोग बंद कर दिया है। यदी नमक का प्रयोग बंद कर देंगे तो आपके पेट की अति सूक्ष्म चमड़ी जिसे ‘म्यूकस’ कहते हैं, जलेगी नहीं। यदी वह जलेगी नहीं तो आप को प्यास नहीं लगेगी। मैंने प्रयोग किया है, कर रहा हूँ और करता रहूँगा। आप भी करके देखें। स्वयं का अनुभव सबसे बड़ा प्रमाण है। नमक के प्रयोग के साथ ही यदी अग्नि पर पका हुआ भोजन भी छोड़ दें अर्थात् प्राकृतिक आहार ग्रहण करें तो सिगरेट, शराब, जुआ एंब सभी असामाजिक व्यसन स्वयं ही ऐसे उड़ जायेगें जैसे गधे के सिर से सींग। यदी पूर्ण प्राकृतिक भोजन का प्रयोग किया जाये तो कितना ही वजन शरीर का हो, वह ठीक हो सकता है। यह मेरे अनुभव का ही ठोस प्रमाण है। मेरा वजन 70 किलो से 47 किलो मात्र 30 दिन में हो गया था।
चौकानें वाला तथ्य: दिन में फ्रिज के अन्दर रात होती है। अत: पत्तेदार सभी सब्जियाँ ( पालक, धनिया, बथुआ आदि) फ्रिज के अन्धेरे में कार्बन-डाइऑक्साइड पैदा करती रहती हैं, चाहे भले ही सूर्य निकला हो। अत: पत्तेदार सब्जियोंको फ्रिज से निकाल कर एकदम प्रयोग ना करें। पहले उन्हें सूर्य की किरणों में कम से कम 30 मिनट के लिए अवश्य रख दें। यदी सूर्य की किरणें मौजूद न हों और सूर्यास्त भी न हुआ हो तो कम से कम एक घण्टा उन्हें दिन के उजाले में रख दें। उसके बाद ही प्रयोग करें।सूर्यास्त के बाद तो पत्तेदार सब्जियों को हरगिज प्रयोग न करें। वह फायदा पहुँचाने की बजाय शरीर को नुकसान ही पहुँचायेंगी।
यह बात भी अखबारों में कई बार छप चुकी है कि सूर्य निलकने से पहले सभी पत्ते ऑक्सीजन पैदा नहीं करते। अत: सैर करने वाले प्रमियों को यह बात खासतौर पर ध्यान में रखनी चाहिए। सैर करने से शरीर के अंग तोसुचारु हो जाते हैं, परन्तु शुद्ध ऑक्सीजन न मिलने के कारण वहाँ जमा भोजन के रस का पूर्ण सदुपयोग नहीं हो पाता। वातावरण में जितनी ऑक्सीजन होती है वह सुबह लगभग 4 बजे तक खत्म हो जाती है। इसलिए ही ज्यादातर हार्ट व दमे के अटैक 4 बजे के आस-पास हो जाते हैं, परन्तु उनका पता देर में चलता है। एयर कण्डीशन कमरों में भी ऑक्सीजन सुबह 4 बजे तक लगभग खत्म हो जाती है। जब ठण्ड के महीनों में धुन्ध बहुत ज्यादा होती है, उस समय धुन्ध कार्बन डायऑक्साइड को आकाश में जाने से रोकती है। ऐसे मौसम में वे लोग, जो ऑक्सीजन लेने में समर्थ नहीं हैं, उनको तो सूर्य के अच्छी प्रकार उदय होने से पहले हरगिज घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। यह नियम महानगरों के लिए है जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हैं। गॉव, पहोड़ों व खुली जगहों पर रहने वालों के लिए नहीं। यह भी बात गौरतलब है कि कितना भी सैर करने का पक्का प्रेमी हो, यदी भोजन गलत है तो ब्रह्मा भी बीमारियों से नहीं बचा सकते। आप अपने आस-पास जरा गौर करें तो आपको ऐसे व्यक्ति अवश्य मिल जाएंगे।
आपके शरीर में बहुत-सी ऊर्जाएँ छिपी पड़ी हैं। उन्हें जगाने के लिए गहरी श्वास लें। हाइपर ऑक्सीजन! जितनी प्राणवायु भीतर जायेगी, उतनी एनर्जी उपलब्ध होगी। जब प्राणवायु ज्यादा शरीर के अन्दर जायेगी तो शरीर ज्यादा से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर फैंक देगा अर्थात् शारीरिक अशुद्धि कम हो जायेगी। यदी शरीर में अशुद्धियाँ कम हो जायेंगी तो मन भी अशुद्ध कम होगा। मन में अशुद्ध विचार कम से कम पनपेंगे। इससे एक फायदा और भी होगा। यदि श्वास गहरी लेंगे तो नींद भी कम हो जायेगी। उससे घबराना नहीं चाहिए। नींद का समय तो कम होगा, परन्तु कम समय में नींद पूरी हो जाएगी। साँस की गहराई के साथ नींद की गहराई भी बढ़ती है। कम समय में भी आप ज्यादा ताजा, ज्यादा आनन्दित और ज्यादा स्वस्थ सुबह उठेंगे। अक्सर आदमी 20-22 साँस एक मिनट में लेता है। यदी आप गहरी और लम्बी साँस लेंगे तो मुश्किल से 4-5-6 साँस ही एक मिनट में ले सकेंगे। इससे आपका प्राणायाम तो होगा ही, साथ ही आपकी आयु भी लम्बी होगी, क्योंकि कहा जाता है कि हर मनुष्य को श्वास गिनती के ही मिले हैं।
जैसे ही आप भोजन करते हैं, आपकी प्राणशक्ति (जीवन ऊर्जा) भोजन को पचाने के कार्य में लग जाती हैष जब जीवन ऊर्जा पेट पर पूर्ण रूप से ध्यान लगाती है तभी आपको नींद आने लगती है। क्योंकि मस्तिष्क खाली हो जाता है। यह शरीर का भोजन पचाने का नियम है। यदी इस नीयम का उल्लंघन किया जायेगा तो सभी बीमारियों को आपका निमंत्रण पहुँच जायेगा और वे आपके शरीर रूपी घर में बैठ जायेंगी। अत: यदि आप भोजन करते हैं तो भोजन के बाद मस्तिष्क को आराम दें अर्थात् उससे कोई काम न लें, मस्तिष्क का कार्य न करें। यदि आप मस्तिष्क का कार्य करेंगे तो जीवन ऊर्जा जो भोजन को पचाने के कार्य में व्यस्त है, वह पाचन क्रिया छोड़कर मस्तिष्क में आ जायेगी। ऊर्जा तो एक ही है, चोहे भोजन पचा लें या अन्य कार्य करें। अदि आपका कार्य केवल मस्तिष्क का है और आप भोजन करने के बाद कम से कम 30 मिनट आराम नहीं कर सकते तो आप भोजन हरगिज न करें। बड़े-बड़े नामी-गिरामी डॉक्टर और वैद्द भी इतनी सी बात नहीं समझ पाते। इसलिए ही तो डॉक्टरों के भी पेट, दुकानदोरों की तरह बढ़े रहते हैं और यही नहीं, उनके रोग भी आप से भित्र नहीं होते। मैने स्वयं सर्वेक्षण किया तो मुझे पता चला हार्ट के सर्जन की बाई-पास सर्जरी हुई। बाकी अन्य बीमारियों का तो मैं जिक्र क्या ही करूँ। आँखों पर चश्मा चढ़ाना, आँखों की कमजोरी पर पर्दा डालना ही है। राजा हो या रंक, डॉक्टर, वेद्द, हकीम हो या साधारण प्राणी, प्रकृति के कुछ नियम हैं, उनका उल्लंघन करोगे तो सजा तो मिलेगी ही।
अब प्रशन यह है कि यदि भोजन न करें तो क्या करें। हर समस्या का हल है। मनुष्य जैसा अक्लमन्द व्यक्ति किसी भी कार्य में हार मानने वाला हैं ही नहीं। बस लग जायें फल खाने या फलों का जूस पीने। यदि फल न ख सकें, तो गाजर, मूली, पत्ता गोभी, मटर के दाने, टमाटर, चुकन्दर, धनिया, पालक, मेथी, बथुआ, आदि के पत्ते और न जाने क्या क्या भरा पड़ा है। प्रकृति का दिया हुआ, उसे खा लें और काम करने लगें। खीरा, घीया, टमाटर, टिण्डा, सफेद पेठा, सीताफल, आलू, शकरकन्दी, बन्दगोभी, मूली, आदि जिसका भी जूस अच्छा लगे, पीने लगें। यदि घर से लंच डिब्बा ले जा सकते हों तो उसकी जगह फल सब्जी भी ले जा सकते हैं। यदी जूस वाला दफ्तर के किचन में नहीं है तो दफ्तर की किचन में जूस की मशीन भी लगाई जा सकती है। आदमी जो चाहे कर सकता है।

(लेखक देश के जाने माने प्राकृतिक चिकित्सक और आहारशास्त्री हैं)